उच्च शिक्षा : दशा एवं दिशा

उच्च शिक्षा : दशा एवं दिशा

उच्च शिक्षा : दशा एवं दिशा

 

दुमका

 

भारत, विश्व के श्रेष्ठ उच्च शिक्षण संस्थानों में न केवल विकसित राष्ट्रों से पीछे है बल्कि कई विकासशील राष्ट्र भी भारत से आगे है l भारत में जनसंख्या के अनुपात में उच्च शिक्षण संस्थानों की काफी कमी है और साथ ही इनमें शिक्षकों एवं आधारभूत सुविधाओं का नितांत अभाव है l कुछ बदलती सरकारी नीतियां इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है जिससे स्थाई पद भरे नहीं जा सके हैं और जिस तरीके से आगे निजीकरण की नीतियां आ रही है लगता है भरना संभव भी नहीं होगा l शिक्षण संस्थानों के कर्मचारी आज काफी बुरे दौर से गुजर रहे हैं l

 

 उच्च शिक्षण संस्थानों के बुरे हाल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बेरोजगारी के जमाने में चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों के लिए भी मास्टर्स और पीएचडी धारक बड़ी संख्या में अप्लाई कर रहे हैं l शिक्षा व्यवस्था में कुछ गुणात्मक बदलाव की पहल सरकार को करनी है तो उसे गरीब विरोधी नीतियों को छोड़कर नए सिरे से इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होगा l शिक्षा में सरकारी फंडिंग को बढ़ाना होगा शिक्षक और कर्मचारियों को भारी संख्या में स्थाई करना होगा, संसाधनों का विस्तार करना होगा l शिक्षा व्यवस्था के विभिन्न अवयवों को भी एकजुट होकर सरकार पर भारी दबाव बनाने की जरूरत है l यूजीसी को प्राचार्य को बुलाकर ऑटोनॉमी पर वर्कशॉप करने की जगह शिक्षा के बिगड़ते हालात को कैसे दुरुस्त करें इस पर वर्कशॉप कर चर्चा आयोजित करनी चाहिए l अगर जल्दी ही कारगर कदम नहीं उठाए गए तो और भयावह परिणाम की आशंका हैl

 

 

 हम अगर झारखंड जैसे छोटे राज्य की बात करें तो झारखंड में उच्च शिक्षा का मुद्दा कभी कोई उठाता नहीं और नेता नजर अंदाज करते हैं l राज्य में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा की स्थिति यह है की आधे से ज्यादा स्टूडेंट्स को पढ़ने के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है l चुनाव के समय युवाओं को रोजगार दिलाने के बड़े-बड़े वादे और दावे होते हैं लेकिन उच्च एवं तकनीकी शिक्षा दिलाने की बात नहीं होती l झारखंड में उच्च शिक्षा का खस्ताहाल कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनता l झारखंड में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा का ऑप्शन दिलाने की बात नहीं होती तथा होनहारों के लिए हर वर्ष पलायन की मजबूरी बनी रहती है l केंद्र सरकार हर वर्ष उच्च शिक्षा में राज्यों की स्थिति पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी करती है और हर वर्ष झारखंड वहीं खड़ा रहता है जहां पहले खड़ा था l झारखंड में उच्च शिक्षा की स्थिति का आकलन ऐसे कर सकते हैं कि एक लाख की आबादी पर मात्र आठ कॉलेज उपलब्ध है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इतनी आबादी पर 30 कॉलेज उपलब्ध है, कॉलेज की उपलब्धता कम होने के कारण यहां छात्रों की भीड़ होती हैl एक कॉलेज में औसतन 1848 छात्रों का नामांकन होता है इसका कहीं ना कहीं असर शैक्षणिक गुणवत्ता पर पड़ता है l 

 

इस मामले में पूरे देश में बिहार राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के बाद झारखंड की सबसे खराब स्थिति है l राज्य में उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात की स्थिति भी अच्छी नहीं है यहां यह अनुपात 18.6 है, छात्राओं का सकल नामांकन अनुपात छात्रों से अधिक है l झारखंड में 54 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक उपलब्ध है जबकि विश्वविद्यालय एवं कॉलेज में तो 60 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक उपलब्ध है l यहां का कोई भी सरकारी कॉलेज या विश्वविद्यालय एनआईआरएफ रैंकिंग में स्थान नहीं बना पाता, नैक एक्रीडिएशन की स्थिति भी यहां अच्छी नहीं है l शिक्षा में निचले पायदान पर रहने वाले झारखंड में पिछले 24 वर्षों में कई नए कॉलेज और विश्वविद्यालय खुले तथा तकनीकी शिक्षा के लिए भी कई संस्थानों की स्थापना हुई इसके बाद भी झारखंड इसमें अभी भी काफी पीछे है l राज्य में नये उच्च शिक्षण संस्थान खोलने की जगह पूर्व से संचालित संस्थानों में आधारभूत संरचनाओं के विकास तथा गुणवत्ता में सुधार लाने की जरूरत है l निजी क्षेत्र को भी बढ़ावा देना होगा l 

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 के अनुसार सभी उच्चतर शिक्षण संस्थानों को मल्टी डिसीप्लिनरी के रूप में विकसित किया जाना है तथा सकल नामांकन अनुपात को वर्ष 2035 तक 50% तक लाना है इसे ध्यान में रखते हुए हाल के वर्षों में काफी प्रयास हुए हैं फिर भी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन अनुपात राष्ट्रीय स्तर के मुकाबले काफी कम है l

निष्कर्षतः हम कह सकते हैं की केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों का दायित्व है की पहले से संचालित स्थायी सम्बद्धता प्राप्त डिग्री कॉलेज को अंगीभूत करने की प्रक्रिया प्रारम्भ करते हुए वहाँ के शिक्षकों को निर्धारित समय सीमा के अंदर अपनी शैक्षणिक योग्यता को दुरुस्त करने को निर्देशित करें साथ ही रिक्त पदों को बैकलॉग करते हुए रोस्टर का अक्षरसह पालन सुनिश्चित करे वरना निकट भविष्य में उच्च शिक्षण संस्थाओं की स्थिति और बदतर होती जाएगी l

 

डॉ. अमर नाथ सिंह

वनस्पति विज्ञान विभागाध्यक्ष

ए. एन. कॉलेज, दुमका

सदस्य, झारखण्ड बायोडाइवर्सिटी बोर्ड

amarbot2024@gmail.com

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