मत्स्य संरक्षण के लिए सरकार के साथ-साथ लोगों की भागीदारी भी जरूरी: उपायुक्त

मत्स्य संरक्षण के लिए सरकार के साथ-साथ लोगों की भागीदारी भी जरूरी: उपायुक्त

मत्स्य संरक्षण के लिए सरकार के साथ-साथ लोगों की भागीदारी भी जरूरी: उपायुक्त

——- साहिबगंज गंगा नदी में दो लाख मत्स्य बीजों को छोड़ा गया

——– राष्ट्रीय रैंचिंग कार्यक्रम 2022 के तहत किया जा रहा है डॉल्फिन और हिलसा मछली का संरक्षण

 

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साहिबगंज: आजादी के 75 वे अमृत महोत्सव को लेकर राष्ट्रीय रैंचिंग कार्यक्रम 2022 के तहत केंद्रीय स्थलीय मतस्यिकी अनुसंधान संस्थान बैरकपुर के तत्वाधान में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसी क्रम में कार्यक्रम को यादगार बनाने के उद्देश्य से नमामि गंगे के तहत मंगलवार को गंगा नदी के समग्र विकास को लेकर साहिबगंज में गंगा नदी में दो लाख मत्स्य बीज छोड़ा गया।

जिसमें रेहू, कतला, मृगल आदि प्रजाति के मत्स्य बीज शामिल थे। मौके पर साहिबगंज जिले के उपायुक्त रामनिवास यादव खासतौर से मौजूद थे। इस दौरान जन जागरूकता के तहत मत्स्य रैंचिंग, डॉल्फिन संरक्षण, हिलसा संरक्षण आदि कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

सिफरी के वैज्ञानिक डॉ राजू बैठा, मिथिलेश रामटेके और मत्स्य सोसाइटी के अध्यक्ष अशोक चौधरी आदि की मौजूदगी में कार्यक्रम का आयोजन किया। मौके पर उपायुक्त रामनिवास यादव ने गंगा नदी में मत्स्य संरक्षण के लिए सरकार के साथ-साथ आम लोगों की भागीदारी पर भी बल दिया।

वही सी आई एफ आर आई बैरकपुर के निदेशक सह नमामि गंगे परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉक्टर बसंत कुमार ने मछुआरों को गंगा नदी से प्राप्त होने वाली मछलियों और डॉल्फिन के स्वास्थ्य और संरक्षण के पारिस्थितिकी विषयों को लेकर जागरूक किया।

 

कहा कि परियोजना के तहत चार अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के अलग-अलग क्षेत्रों में लगभग 56 लाख से अधिक मत्स्य बीजों को छोड़ा जा रहा है। ताकि गंगा की धारा स्वच्छ और निर्मल हो सके। उन्होंने मछुआरों को अधिक से अधिक आय का साधन उपलब्ध कराने और हिलसा मछली और डॉल्फिन कैसी जलीय जीवो का संरक्षण मिल सके इस पर खास ध्यान दिया जा रहा है। कहा कि हिलसा की 64 हजार बीज कोगंगा नदी में छोड़ा गया है वहीं गंगा नदी डॉल्फिन के घर की संख्या पर भी चिंता का विषय है।

की संख्या बढ़ाने के लिए भी लगातार प्रयास किया जा रहा है। कहा कि एक समय यहां पर डॉल्फिन काफी संख्या में पाया जाता था, लेकिन आज के दिनों में इनकी संख्या गिनी चुनी रह गई है। जन सहयोग से गंगा को स्वच्छ करने के उद्देश्य से इनकी संख्याओं में बढ़ोतरी करवाने का प्रयास किया जा रहा है।

 

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