राष्ट्रपति व मुख्यमंत्री बढ़ा रहे हैं आदिवासियों का मान

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गौरवशाली रहा है आदिवासी समाज का अतीत

-विश्व आदिवासी दिवस पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन

गोड्डा

विश्व आदिवासी दिवस पर जिला मुख्यालय सहित विभिन्न प्रखंडों व सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। जगह- जगह शहीदों को नमन किया गया व पारंपरिक नृत्य संगीत का कार्यक्रम आयोजित किया गया। मंगलवार को जिला मुख्यालय में फूलो -झानो स्मारक समिति गंगटा खुर्द की ओर से विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। सबसे पहले गंगटा खुर्द स्थित फूलो- झानो की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया एवं उसके उपरांत कारगिल चौक एवं उपायुक्त आवास स्थित सिदो- कान्हू प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया गया। इसके उपरांत नगर भवन में मुख्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्धाटन अनुमंडल पदाधिकारी ऋतुराज , नगर परिषद अध्यक्ष जितेन्द्र कुमार मंडल, नगर परिषद उपाध्यक्ष बेणु चौबे , फूलो झानो स्मारक समिति के अध्यक्ष भरत हांसदा, महेन्द्र हांसदा, ईश्वर हेम्ब्रम आदि ने संयुक्त रूप से किया। एसडीओ ऋतुराज ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस दोहरा खुशी के साथ मनाया जा रहा है। आदिवासी समाज का अतीत गौरवशाली रहा है। प्रकृति से इनका लगाव रहा है। आज देश के राष्ट्रपति व सूबे के मुख्यमंत्री भी इसी समाज से हैं, यह राज्य के लिए हर्ष की बात है। विश्व आदिवासी दिवस पर अपनी गौरवशाली अतीत को अक्षुण्ण रखने व समाज को विकास की ओर अग्रसर करने का संकल्प लेने की जरूरत है।

राष्ट्रपति व मुख्यमंत्री बढ़ा रहे हैं आदिवासियों का मान

इसके अलावा आदिवासी समाज में व्याप्त अशिक्षा, स्वास्थ्य, कुपोषण, पलायन, विस्थापन, विलुप्त होते आदिवासी समाज जैसे ज्वलंत मुद्दे पर परिचर्चा आयोजित की गई। इस अवसर पर मुख्य रूप से समिति के अध्यक्ष भरत हांसदा, महेन्द्र हेम्ब्रम, संतोष सोरेन, ईश्वर हेम्ब्रम, महेन्द्र हेम्ब्रम, संतोष सोरेन, जोहन हांसदा, पैट्रिक हांसदा, लाल किशोर, राजेश हेम्ब्रम, मदन हेम्ब्रम, निर्मला हेम्ब्रम आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम के दौरान आदिवासी समाज की ओर से रंगारंग पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया गया। इस नृत्य संगीत कार्यक्रम में देर शाम तक लोग झूमते रहे।

सिंधु घाटी सभ्यता से ही जुड़े हैं संताल आदिवासी : परीक्षित

इधर प्रखंड मुख्यालय स्थित संत फ्रांसिस उच्च विद्यालय में विश्व आदिवासी दिवस पर मंगलवार को कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानाध्यापक फादर राजू, सिस्टर गुलाब ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस अवसर पर हिंदी के शिक्षक व साहित्यकार परीक्षित मंडल ने शिक्षकों व छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि आज का दिन संथाल परगना के लिए ही नहीं विश्व के लिए भी एक विशेष दिन है। उन्होंने कहा कि संताल जनजाति का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो से है। परीक्षित मंडल ने बताया कि सिंधु घाटी सभ्यता का एक नगर का नाम मोहनजोदड़ो है ।कतिपय विद्वानों द्वारा मोहनजोदड़ो का शब्दार्थ संभवतः सिंधी भाषा के माध्यम से मुर्दों की ढेर या टीला बताया गया है। उन्होंने कहा कि मोहनजोदड़ो शब्द मूलत: संताली भाषा का शब्द है। इस शब्द का अर्थ इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है मोहें संताली भाषा में (कली), जो (फल),दड़ो( पेड़ या वृक्ष)। यहां दारे का अपभ्रंश दड़े हो गया है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि किसी समय सिंधु सभ्यता का यह प्रदेश जो आज की अपेक्षा अधिक कलियों, फलों व पेड़ों से हरा-भरा व जलसिंचित रहा होगा। वहां एक सर्वांगपूर्ण सभ्यता का उद्भव एवं विकास हुआ होगा. जिसे मोहेंजोदारो नाम दिया गया होगा। इससे प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता की सुरम्य वादियों में ईस्वी पूर्व 6000 वर्ष पहले संतालों के पूर्वज रहते होंगे और उन्हीं का भाषा एक लिपि प्रचलित रही होगी। आज भी संताल जनजाति के गीतों में सप्त नदी की बात गर्व के साथ लिया जाता है।
उन्होंने कहा कि सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई में अनेक स्थानों पर कब्रगाह भी मिले हैं ।इस सभ्यता के मनुष्य अपने शवों के साथ उपभोग में लाई जाने वाली वस्तुओं यथा वर्तन, आभूषण आदि भी जमीन में गाड़ते थे। यही कारण है कि कब्रगाह में अस्थि पंजर के साथ बर्तन आभूषण आदि भी मिले हैं। यह प्रथा आज भी आदिवासियों में प्रचलित है। वहीं उन्होंने बताया कि संतालों द्वारा अपनी परंपरागत पर्व त्योहारों के अवसर पर बनाए जाने वाले चित्र लेखन सिंधु सभ्यता के अनेक चिन्हों से मिलते जुलते हैं। इतना ही नहीं सिंधु सभ्यता के अवशेषों में ऐसा मुद्रांक मिला है जिस पर पशुपति शिव की प्रतिमा अंकित है इससे भी यही समझा जाता है कि इस सभ्यता में संतालों का भी संबंध रहा होगा क्योंकि पशुपति शिव (मरांग बुरु) संतालों के देवी देवताओं में अन्यतम है ।इस मुद्रांक में त्रिमुख देवता का एक विशेष अनुष्ठानात्मक स्थिति में एक आसन पर बैठा है तथा इसके मुकुट कुछ विशिष्ट किस्म का है। अनेक पुरालिपिविदों ने इस आकृति को पशुपति शिव का प्रतीक माना है इस मुकुट के सिंगों में 12 वलय देखने को मिलते हैं वो संतालों में प्रचलित 12 गोत्रों का द्योतक है। सतालों के 12 गोत्र (पारिस) इस प्रकार है किस्कू ,सोरेन, हांसदा, बेसरा, बास्के,मरांडी, हेम्ब्रम, बेदिया, पौंड़िया, चौड़े। अन्य शिक्षकों ने भी अपने संबोधन में आदिवासी दिवस की महत्ता पर प्रकाश डाला । कार्यक्रम को शिक्षक डेनिस सोरेन, चंद्र मोहन कुमार, एन्थोनी टुडू आदि शिक्षकों ने संबोधित किया।

विश्व आदिवासी दिवस पर पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में स्वदेशी महिलाओं की भूमिका’ विषयक सेमिनार का आयोजन

ग्रामीण विकास ट्रस्ट- कृषि विज्ञान केन्द्र, गोड्डा के तत्वावधान में पथरगामा प्रखण्ड के ग्राम- घुटिया में विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया| कृषि प्रसार वैज्ञानिक डाॅ. रितेश दुबे ने बताया कि पूरी दुनिया में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1982 में शुरू हुई इस परंपरा का हर साल पालन किया जाता है| संयुक्त राष्ट्र बड़े पैमाने पर इसका आयोजन करता है।| इस बार विश्व आदिवासी दिवस का थीम ‘पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में स्वदेशी महिलाओं की भूमिका’ रखा गया है। झारखंड राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, दिशोम गुरु शिबू सोरेन, वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से लेकर भारत की नयी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समाज का मान बढ़ा रहे हैं। किसानों की सूखा संबंधित समस्याओं के निराकरण के लिए धान कम समय में तैयार होने वाली उन्नत प्रजाति सहभागी, सबौर अर्द्ध जल, बिरसा विकास धान की सीधी बुआई ऊपरी जमीन में करने की जानकारी दी गई। वैकल्पिक खेती के रूप में अरहर, कुल्थी तथा सरगुजा की खेती करने की जानकारी दी गई। उद्यान वैज्ञानिक डाॅ. हेमंत कुमार चौरसिया ने टमाटर तथा गोभी की खेती, केंचुआ खाद तथा कम्पोस्ट तैयार करने की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन प्रदान संस्था के सदस्य लक्ष्मण सिंह ने किया। मौके पर सुषमा मुर्मू, सोनी हांसदा, महाफूल मुर्मू, प्रियंका मरांडी, जतन मरांडी, ईश्वर हांसदा समेत 50 प्रगतिशील महिला- पुरुष किसान उपस्थित थे। |

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